( एक शाम आशिक के द्वारा माशूका की याद में लिखी गयी लाइनें) शाम ढलने लगी है ,कुछ इस तरह, चारो तरफ है,धुँआ ही धुँआ । शाम .......................... बादलों का समां है,कुछ इस तरह, मेघों ने,बरसना शुरू कर दिया । शाम ......................... अब तो थमने लगा है पहर शाम का, तारों ने चमकना, शुरू कर दिया । शाम ........................ चाँदनी रात छत पर चलती हुई, मुस्कुराती हुई,खिलखिलाती हुई रात बढ़नें लगी है, कुछ इस तरह, चारो तरफ है शमां खुशनुमां । आ जाओ सनम, अब तो कर लो मिलन रात का ये समां, वरना थम जायेगा । रात बढने ............... अब तो थमने लगा है पहर रात का, न सोचा था, दिल टूट के,यूँ बिखर जायेगा । रात बढ़ने लगी है, कुछ इस तरह, दिल जलता हुआ,सब बिखरता हुआ । राजीव गिरि